नई दिल्ली।। सरबजीत के रिहा न होने के 'दुख' के बीच पाकिस्तान
की जेल में उम्रकैद की सजा काटने के बाद भारतीय सुरजीत सिंह गुरुवार सुबह
वाघा बॉर्डर से भारत पहुंचे। सरबजीत के रिहा न होने के गम में हर कोई
सुरजीत के परिवार की खुशी को भुला बैठा। सुरजीत को गुरुवार सुबह लाहौर की
कोट लखपत जेल से रिहा किया गया।
इसके बाद वह पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ वाघा बॉर्डर पहुंचे। उन्हें वहां भारतीय अधिकारियों के सुपुर्द किया गया। सुरजीत की रिहाई से उनके गांव व परिवार में खुशी का माहौल है। वहीं सरबजीत का परिवार उनकी रिहाई के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठा है।
हाथों में थी हथकड़ी
सुरजीत जब वाघा सीमा पर पहुंचे तो उनके हाथों में हथकड़ी थी। उनकी हथकड़ी लोहे की एक जंजीर के जरिए पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी की बेल्ट से जुड़ी हुई थी। सफेद कुर्ता-पायजामा पहने और काले रंग की पगड़ी लगाए सुरजीत के साथ उनके दो बैग थे। वह पुलिस की गाड़ी से वाघा पहुंचे। जब वह गाड़ी से उतरे तो उनके हाथों में हथकड़ी थी। वह लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहाई के एक घंटे बाद वाघा पहुंच गए थे।
पाकिस्तानी वकील को लगाया गले
सुरजीत ने उन्हें स्वदेश भेजे जाने की सारी औपचारिकताएं पूरी करने से पहले मुस्कुराते हुए अपने पाकिस्तानी वकील को गले लगाया। सुरजीत 30 साल से भी लंबे समय से पाकिस्तानी जेल में कैद थे। उनकी उम्रकैद की सजा 2005 में पूरी हो गई थी।
भारत पहुंचने पर सुरजीत ने कहा कि वह बेहद खुश हैं। वह भारतीय पंजाब की अटारी सीमा में बेसब्री से उनका इंतजार कर रहे अपने परिवार से मिलने के लिए बेताब हैं। उन्होंने साथ ही पाकिस्तान का भी शुक्रिया अदा किया। सुरजीत ने पंजाबी में बोलते हुए कहा कि पाक जेल में उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। साथ ही उन्होंने कहा,'दोनों देशों की जेलों में बंद एक-दूसरे के कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए।'
हां, जासूसी करने गया था पाकिस्तान
रिपोर्टरों से बातचीत में सुरजीत ने कहा कि वह पाकिस्तान कभी नहीं जाएंगे। सुरजीत ने स्वीकार किया कि वह पाकिस्तान जासूसी करने गए थे। सुरजीत ने कहा मुझ पर जासूसी का आरोप है। यदि में दोबारा पाकिस्तान गया तो वे समझेंगे कि मैं फिर जासूसी करने आया हूं। यही वजह है कि मैं पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहता।
सरबजीत से हर हफ्ते मिलता था
सुरजीत सिंह ने कहा है कि मौत की सजा का सामना कर रहे सरबजीत सिंह ठीकठाक हैं और उम्मीद जताई कि वे भी जल्दी ही आजाद हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि वह और सरबजीत एक ही जेल में थे और 49 वर्षीय सरबजीत से हर हफ्ते मिलते थे। सुरजीत ने बताया कि वहां उन्हें कोई तकलीफ नहीं है। वह ठीक हैं।
बेनजीर ने बदली थी सुरजीत की सजा
सुरजीत सिंह 30 साल से ज्यादा वक्त से पाकिस्तान की कैद में थे। उन्हें भारतीय सीमा के नजदीक पकड़ा गया था। उस पर जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल के दौरान जासूसी करने का आरोप लगाया गया। उन्हें 1989 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सिफारिश पर सुरजीत की मौत की सजा उम्रकैद में बदल दी गई थी।
इसके बाद वह पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ वाघा बॉर्डर पहुंचे। उन्हें वहां भारतीय अधिकारियों के सुपुर्द किया गया। सुरजीत की रिहाई से उनके गांव व परिवार में खुशी का माहौल है। वहीं सरबजीत का परिवार उनकी रिहाई के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठा है।
हाथों में थी हथकड़ी
सुरजीत जब वाघा सीमा पर पहुंचे तो उनके हाथों में हथकड़ी थी। उनकी हथकड़ी लोहे की एक जंजीर के जरिए पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी की बेल्ट से जुड़ी हुई थी। सफेद कुर्ता-पायजामा पहने और काले रंग की पगड़ी लगाए सुरजीत के साथ उनके दो बैग थे। वह पुलिस की गाड़ी से वाघा पहुंचे। जब वह गाड़ी से उतरे तो उनके हाथों में हथकड़ी थी। वह लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहाई के एक घंटे बाद वाघा पहुंच गए थे।
पाकिस्तानी वकील को लगाया गले
सुरजीत ने उन्हें स्वदेश भेजे जाने की सारी औपचारिकताएं पूरी करने से पहले मुस्कुराते हुए अपने पाकिस्तानी वकील को गले लगाया। सुरजीत 30 साल से भी लंबे समय से पाकिस्तानी जेल में कैद थे। उनकी उम्रकैद की सजा 2005 में पूरी हो गई थी।
भारत पहुंचने पर सुरजीत ने कहा कि वह बेहद खुश हैं। वह भारतीय पंजाब की अटारी सीमा में बेसब्री से उनका इंतजार कर रहे अपने परिवार से मिलने के लिए बेताब हैं। उन्होंने साथ ही पाकिस्तान का भी शुक्रिया अदा किया। सुरजीत ने पंजाबी में बोलते हुए कहा कि पाक जेल में उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। साथ ही उन्होंने कहा,'दोनों देशों की जेलों में बंद एक-दूसरे के कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए।'
हां, जासूसी करने गया था पाकिस्तान
रिपोर्टरों से बातचीत में सुरजीत ने कहा कि वह पाकिस्तान कभी नहीं जाएंगे। सुरजीत ने स्वीकार किया कि वह पाकिस्तान जासूसी करने गए थे। सुरजीत ने कहा मुझ पर जासूसी का आरोप है। यदि में दोबारा पाकिस्तान गया तो वे समझेंगे कि मैं फिर जासूसी करने आया हूं। यही वजह है कि मैं पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहता।
सरबजीत से हर हफ्ते मिलता था
सुरजीत सिंह ने कहा है कि मौत की सजा का सामना कर रहे सरबजीत सिंह ठीकठाक हैं और उम्मीद जताई कि वे भी जल्दी ही आजाद हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि वह और सरबजीत एक ही जेल में थे और 49 वर्षीय सरबजीत से हर हफ्ते मिलते थे। सुरजीत ने बताया कि वहां उन्हें कोई तकलीफ नहीं है। वह ठीक हैं।
बेनजीर ने बदली थी सुरजीत की सजा
सुरजीत सिंह 30 साल से ज्यादा वक्त से पाकिस्तान की कैद में थे। उन्हें भारतीय सीमा के नजदीक पकड़ा गया था। उस पर जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल के दौरान जासूसी करने का आरोप लगाया गया। उन्हें 1989 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सिफारिश पर सुरजीत की मौत की सजा उम्रकैद में बदल दी गई थी।
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