Friday 13 July 2012

बिहार को दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी का तोहफा................

केंद्र ने बिहार को दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी देने का फैसला किया है। बिहार में दो नई यूनिवर्सिटीज गया और मोतिहारी में बनाने का फैसला हुआ है। यूनिवर्सिटी बनाने को लेकर केंद्र और राज्य के बीच लंबे समय से ठनी हुई थी पर बदले सियासी माहौल ने इस स्थिति को भी बदल दिया।

केंद्र के इस फैसले के पीछे तमाम सियासी समीकरणों की अहम भूमिका रही है। राजनैतिक हलकों में इसे मौजूदा राजनैतिक हालात और आगामी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कांग्रेस को लग रहा है कि आगामी कई मौकों पर जेडी(यू) उसका साथ दे सकती है।

इस फैसले की जानकारी शुक्रवार को मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने दी। असल में गया में बेहतर कनेक्टिविटी की वजह से केंद्र गया में सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने का इच्छुक था, जबकि नीतिश मोतिहारी में यूनिवर्सिटी चाहते थे। इसके लिए बिहार असेंबली में बाकायदा एक प्रस्ताव भी पास किया गया। इस मसले पर सिब्बल और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आमने-सामने आ चुके थे। दोनों में से कोई झुकने को तैयार नहीं था। माना जा रहा है कि इस फैसले से नीतीश की बात भी रख ली गई और सिब्बल को भी झुकना नहीं पड़ा।

जम्मू-कश्मीर के बाद बिहार देश का ऐसा दूसरा राज्य होगा, जहां बतौर स्पेशल केस दो सेंट्रल यूनिवर्सिटीज होंगी। इसके लिए सरकार को सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऐक्ट में संशोधन करना होगा। केंद्र की ओर से राज्य को सेंट्रल यूनिवर्सिटी की मद में पहले से ही तय 240 करोड़ की राशि ही मुहैया कराई जाएगी, अलग से पैसा नहीं दिया जाएगा।

इस फैसले को आगामी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। राष्ट्रपति पद के लिए जेडीयू प्रणव का समर्थन कर चुकी है। जहां तक उपराष्ट्रपति पद पर अंसारी को लेकर समर्थन की बात है तो माना जा रहा है कि वह अंसारी पर तैयार हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि अंसारी के नाम पर नीतिश कुमार तभी अपनी सहमति जता चुके थे, जब उन्हें राष्ट्रपति की रेस में शामिल माना जा रहा था।

जिस तरह से नीतीश पिछले कई मौकों पर अपने तेवर और स्टाइल के चलते एनडीए से अलग खड़े नजर आए हैं, उसे देखते हुए कांग्रेस को नीतीश के साथ नजदीकी बढ़ाने की संभावना बढ़ती दिखाई दे रही है। इन दोनों चुनावों के साथ-साथ एनडीए में मोदी की बढ़ती ताकत का विरोध और नीतीश की सेक्युलर इमेज जैसे तमाम कारक हैं, जिसे कांग्रेस अपने लिए जेडी(यू) से संबंधों को लेकर बेहतर संकेत मान रही है।

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